समय का चक्र ( कविता )

कल गद्दी पर बैठेंगे राम
सुन हर्षित हुई जनता तमाम ।
पर वक़्त कहाँ यह चाहता था 
उसका कुछ और इरादा था ।
तब मिला राम को वन का वास
हुवे निष्फल सारे प्रयास ।
पर राम को वचन निभाना था 
उनको तो वन में जाना था ।
जब कर्म खेल दिखलाता है
भगवान भी नही बच पाता है ।
तब मानव की भी क्या बिसात
जो काट सके भाग्य की बात
जब राम चले गए वन में 
तो दशरथ भी गए शयन में ।
जब चक्र समय का चलता है 
तो उगता सूरज ढलता है ।।
        
           - चिंतन जैन


Comments

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 अप्रैल 2021 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. सुन्दर रचना .... समय का चक्र ही सब नियंत्रित करता है ..

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