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Showing posts from June, 2020

हार मानूँगा नही

क्या लगता है मैं रुकूँगा नही , असंभव क्या लगता है मैं झुकूँगा नही , असंभव कष्टों को खूँटी पर रखकर सूर्य से नज़र मिलायेंगे । असि मनोबल की लेकर रण-भूमि में भिड़ जाएंगे ।। हम खुद से नौका बनाएंगे और खुद ही पार लगाएंगे । अब उनसें क्या ही आस रखे जो बाते सिर्फ बनाएंगे ।। रोकेंगी मुझकों आँधी क्या मैं पर्वत बन टकराऊँगा बरसेगा मुझपर अम्बर क्या मैं उसकों आँख दिखाऊँगा ।। संघर्षो की आँधी में हम  अपना दीप जलाएंगे । तूफानों की क्या मजाल जो जलते दीप बुझायेंगे ।। विघ्नों से नही डरने वाला । न हाथ खड़े करने वाला । पुरुषार्थ ही मेरा ईश्वर है । मैं स्वयं भाग्य लिखने वाला ।। संघर्ष पथ बढ़ते चलूँगा । कर्म नीत करते चलूँगा । हार मानूँगा नही । अहसान माँगूँगा नही ।        - चिंतन जैन

पापा पर शायरी

भरी दुपहरी में छाँव है पापा लहरों से बचाती नाव है पापा ।। सारी दुनिया शहर स्वार्थ का  इक अपना सा गाँव है पापा ।।             - चिंतन जैन

पिता

माँ पर लिखी गयी मेरी कविताओं को यदि जीवंत रूप  दिया जाये तो वे बिल्कुल  मेरे पिता जैसी दिखेंगी ।।         - चिंतन जैन

कल भी थे कल भी होंगे

एहसानमंद इस प्यार के हम कल भी थे कल भी होंगे आबाद दुआओं से सबकी हम कल भी थे कल भी होंगे । इस फ़कत जिस्म का क्या है यह मिट्टी में मिल जाएगा पर ज़िन्दा दिल में यार के हम कल भी थे कल भी होंगे । सूरज ,चाँद ,सितारे ,बादल ,जिनशासन का नाम बड़ा गुज़रेंगी सदियां कितनी ये कल भी थे कल भी होंगे ।।                               - चिंतन जैन