हार मानूँगा नही
क्या लगता है मैं रुकूँगा
नही , असंभव
क्या लगता है मैं झुकूँगा
नही , असंभव
कष्टों को खूँटी पर रखकर
सूर्य से नज़र मिलायेंगे ।
असि मनोबल की लेकर
रण-भूमि में भिड़ जाएंगे ।।
हम खुद से नौका बनाएंगे
और खुद ही पार लगाएंगे ।
अब उनसें क्या ही आस रखे
जो बाते सिर्फ बनाएंगे ।।
रोकेंगी मुझकों आँधी क्या
मैं पर्वत बन टकराऊँगा
बरसेगा मुझपर अम्बर क्या
मैं उसकों आँख दिखाऊँगा ।।
संघर्षो की आँधी में हम
अपना दीप जलाएंगे ।
तूफानों की क्या मजाल
जो जलते दीप बुझायेंगे ।।
विघ्नों से नही डरने वाला ।
न हाथ खड़े करने वाला ।
पुरुषार्थ ही मेरा ईश्वर है ।
मैं स्वयं भाग्य लिखने वाला ।।
संघर्ष पथ बढ़ते चलूँगा ।
कर्म नीत करते चलूँगा ।
हार मानूँगा नही ।
अहसान माँगूँगा नही ।
- चिंतन जैन
Comments
Post a Comment