कल गद्दी पर बैठेंगे राम सुन हर्षित हुई जनता तमाम । पर वक़्त कहाँ यह चाहता था उसका कुछ और इरादा था । तब मिला राम को वन का वास हुवे निष्फल सारे प्रयास । पर राम को वचन निभाना था उनको तो वन में जाना था । जब कर्म खेल दिखलाता है भगवान भी नही बच पाता है । तब मानव की भी क्या बिसात जो काट सके भाग्य की बात जब राम चले गए वन में तो दशरथ भी गए शयन में । जब चक्र समय का चलता है तो उगता सूरज ढलता है ।। - चिंतन जैन
मुंतज़िर में खुद रहता हूँ उसके इशारे का वो पलके भी झपकायें तो मुझे पता चलता है उसे मैंने अपने ज़हन में इस कदर बसा लिया है मेरी याद भी उसे आये तो मुझे पता चलता है ।। - चिंतन जैन
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