कविता
तू खुद से खुद पे भारी है
तू खुद में पूर्ण तैयारी है ।
तुझमें सूरज सा ताप है
तू खुद में ही प्रताप है ।
तुझमें निहित संसार है
तुझमें शक्ति अपार है ।
तू खुद में ही आकाश है
तुझमें सम्पूर्ण प्रकाश है ।
तुझमें ही तो वे राम है
तू खुद ही चारो धाम है ।
तू शून्य भी अनंत भी
प्रारम्भ भी और अंत भी ।
- चिंतन जैन
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