कविता । ग़ज़ल । शायरी

मैं सर - ए - बज़्म में हंगामा कर दूँगा

नाम तेरा लूंगा और एक शेर पढ़ दूँगा ।

मैं नही करूँगा बाते इश्क़ में बड़ी - बड़ी

हां , तेरे लिए चाय बना दिया करूँगा ।

मैं तरन्नुम में करूँगा बयां हालात-ए-दिल

ग़ज़ल कहूँगा और किस्सा मुख़्तसर कर दूँगा ।

सताएगी तेरी याद जब भी बेहद मुझको

मैं बुझे चराग़ों को फिर से रोशन कर दूँगा ।

पूछेगा जब भी कोई राज़ मेरी कविता का 

"चिंतन", मैं नाम आधा करके उसे ना कर दूँगा ।                     
                    - चिंतन जैन

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